मैं अक्सर देखती थी उसे..
उसके हाथों में दस से ज्यादा अंगूठियां हैं।
कलाई में लगभग हर रंग की मन्नत बंधी है।
जेब में कई कई पते हैं ।
अलग अलग तरीके की मुस्कान रखता है ।
एक पोटली में हज़ारों रंगों की बातें है।
जूतों में अलग अलग शहरों की मिट्टी जमी हैं ।
उसके थैले में रंगीन कंचे हैं जो शायद वो लोगों को दिखा कर वश में कर लेता है।
उसके पास हर रंग के सैंकड़ों सूखे गुलाब हैं।
उसकी आँखों में सात रंगों का धनुक अटका रहता है।
और उसके एक उस तिल पर जहां भर की नज़र अटकी रहती है।
एक रोज़ मुझसे टकरा कर उसने आँखें फ़ेर ली। उसका यूँ मुझे नकारना अच्छा सा नहीं लगा। एक बार को लगा कि पूछ ही लूँ देख कर नहीं चल सकते रंगबाज़....?
रंग बाज़ ये नाम क्यूँ सूझा मुझे ? इस सोच में आंखें मूंद ली। हल्की नींद में लगा कि कोई मुझे पुकार रहा। जी में आया कि एक बार को उठ कर देखूं कि कौन है जो ऐसा बेसब्रा है कि सुबह का इंतज़ार भी नहीं कर रहा। पर नीमबहोशी ने मुझे उठने न दिया। कुछ देर में आंखों के साथ आवाज़ भी बंद हो गयी।
बड़ा सा कैनवास और ढ़ेर रंग और एक खूबसूरत मोरपंखी कूची ....
*क्या बना रही ....
तुम कौन ?
*मैं रंगबाज़
यहां कैसे?
*अतरंगी हूँ कहीं भी चला जाता हूँ... तुमसे टकराया तो तुम्हारी ही तरफ मुड़ गया।
अच्छा तो अब?
*अब क्या तस्वीर बनाओ मेरी....
इतने तो लदे हुए हो।
क्या क्या बनाऊं?
इतनी अंगूठियां क्यूँ?
*वादे हैं।
और ये सतरंगी धागों भरी कलाई?
*ये विश्वास की डोर है।
चेहरे पर इतनी ढ़ेर मुस्कान और ये पते?
*ये तसल्ली हैं।
ये बातों भरी पोटली में क्या है?
*ये .....ये तो शिकायतें - शिकवे हैं।
इन जूतों की मिट्टी?
*ये मिलन और इंतज़ार के बीच का जमा हुआ वक़्त है।
फिर ये कंचे जरूर उदास आँखें होंगी ?
*अरे वाह कल्पना बिल्कुल सही।
जैसे ये सूखे गुलाब निशानियां
*हाँ....
ये आँखें और वो तिल.... let me guess...
चिठियाँ और उस पर वो आखरी वाला तुम्हारा /तुम्हारी लिखा हुआ तिल ही है ना।
*😊😊😊
*तुम प्रेम में हो क्या कल्पना?
नहीं
मैं नींद में हूँ...
रंगबाज़