सच कहूँ ...
तुम्हारे पास मेरे सुकून का बक्सा है।
उसमें तुम्हारा कुछ भी नहीं ... बस कल्पना का सामान भरा हुआ है।कुछ तस्वीरें ,कुछ फिक्र,कुछ प्रश्न,कुछ बातें ,कुछ स्माइली और बहुत सारा मौन भी।
तुम जानते हो कि मैं किस चीज़ पर आँख गढ़ाये बैठी हूँ और क्या कुछ और माँगना चाह रही हूँ। तुम मुस्कुरा कर बस वही देते रहते हो।
हमारा लेना देना भी बस इतना भर है कि मुझे तुमसे कुछ भी कह देने के लिए शब्द नहीं ढूंढने पड़ते ।जब कभी उदास होती हूँ या खुश भी ...तो तुम पर ही जाकर गिरती हूँ। मेरे पास एक वही पता है।
कभी अगर तुम्हारे पास सहलाने के लिए मेरे नाम के मोरपंख न भी हों, मेरी तरफ तुम्हारी पीठ भी कभी नहीं हुई। कभी सुन लेते हो,कभी कह भी देते हो। कभी चुप भी रहते हो ...
मैं इन सबके बीच बहुत सारा जीती जागती रहती हूँ।
इससे बड़ा सुकून क्या होगा कि एक दर हमेशा आने जाने के लिए बना रहता है.... बेलौस
बेझिझक
बेइंतेहां
इसका अपना सुख है।
ये आखिर क्या है ? क्यों है? मैं खुद भी नहीं जानती।
तुम मेरी बात पर अपनी बात रख दो इससे ज्यादा कभी imagine ही नहीं किया। देरी दे भी दो...निराशा कभी नहीं देते तुम । मेरे हर इंतज़ार को तुम्हारी आहट तय है।
स्पर्श और संगीत का घोल
आज फिर वैसा ही हुआ।
मानोगे देर तक थिरकी और उससे भी देर तक मुस्कुराई। कौन सा गाना पूछोगे नहीं...?
" इसमें तेरा घाटा... मेरा कुछ नहीं जाता।
ज्यादा प्यार हो जाता तो मैं सह नहीं पाता।"
☺️☺️☺️
मन अक्सर खुलने से पहले और बाद में भी गाँठ ही होता है। बस खुलते वक़्त ही रेशा रेशा होता है। बस वही रेशा रेशा रहोगे तुम ...हमेशा ।
शुभ रात