जब तलक खरे हैं तालाब और कुँए तब तक ही डुबो सकते हो तुम खारा समुंदर .....
उसके बाद सिर्फ़ और सिर्फ़ वेग फूटेगा ...
वाणी से बल तक का
आक्रोश का उद्गम नहीं होता ....
बस अंत होता है...
एक विचारधारा का
एक पीड़ा का
एक साहसी का
एक चुप का
रक्त बहा क्या ?
खरा था ....कि खारा ?
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