कितनी भी उदासी लिख लूँ जाने क्यों तुम नहीं बनते...न तुमसे मिलने वाली बेचैनियाँ ।
तुम्हें कलम में भर लेना भूल है मेरी पर क्या करूँ ? यही लत भी तो है मेरी।
"कनेर" तुम मुझे इसलिए भी पसंद हो कि तुम गुलाब नहीं हो.... तुम्हारे पास वो अटकी हुई गुलमोहर की टूटी पंखुड़ी मैं हूँ... तुम्हें दूर ...
कोई टिप्पणी नहीं:
टिप्पणी पोस्ट करें