उसे कलम की नोंक से अपनी उदासियाँ सीना आ गया था।वो नीले रंग से छुपाकर रख लेती थी अपना प्रेम।
कुछ चाख रफूगर के नहीं रंगरेज़ के हिस्से भी आते हैं।
"कनेर" तुम मुझे इसलिए भी पसंद हो कि तुम गुलाब नहीं हो.... तुम्हारे पास वो अटकी हुई गुलमोहर की टूटी पंखुड़ी मैं हूँ... तुम्हें दूर ...
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