फ़िक्र निचोड़ दो तो इश्क़ तीता हो जाना है।
मैं रोज़ खुद से एक किरदार बाइज़्ज़त रिहा करती हूँ।
बेशक़ अब मैं गुलाब नहीं उगाती पर मैं अपने कैक्टस जरूर काट देती हूँ.... शब्दों से
अपने हिस्से की सारी चाहनाएँ तुम से ढंक ली हैं.....
औरत पूर्ण को पूरा करना बखूबी जानती हैं।
मैं रोज़ खुद से एक किरदार बाइज़्ज़त रिहा करती हूँ।
बेशक़ अब मैं गुलाब नहीं उगाती पर मैं अपने कैक्टस जरूर काट देती हूँ.... शब्दों से
अपने हिस्से की सारी चाहनाएँ तुम से ढंक ली हैं.....
औरत पूर्ण को पूरा करना बखूबी जानती हैं।
सुनो ! ये बादल ना भेजा करो इश्क़ का
बांवरा है
रुक कर बरस जाता है....
बरस कर ताकता रह जाता है।
बांवरा है
रुक कर बरस जाता है....
बरस कर ताकता रह जाता है।
जाने कब सीखेगा इश्क़ ?
लट्टु ना हो तो.....
दामन में चुटकी भर ही तो हो तुम और सारी की सारी मैं
"याद वाली coffee" ....
इससे ज्यादा क्या करारी होगी ?
"याद वाली coffee" ....
इससे ज्यादा क्या करारी होगी ?
उसे चुनो ......जिसे सुन सकते हो उंगलियों से
इक मुद्दत से उदास कविता पन्नों में बंद थी .....
आज छू कर देखा
गालों में मोती.....
उंगलियों में रेशम चिपक गया।
पन्नों ने संजोयी मखमली मुद्दत खोल कर उड़ा दी
आज छू कर देखा
गालों में मोती.....
उंगलियों में रेशम चिपक गया।
पन्नों ने संजोयी मखमली मुद्दत खोल कर उड़ा दी
कोई टिप्पणी नहीं:
टिप्पणी पोस्ट करें