कितने ही मोड़
कितने ही चौराहे
कितने ही घर
कितने ही चौबारे पार करके रोज़ अपने उस रुके हुए शहर तक पहुंचना अजूबा नहीं आदत है। ये आदतें हमें मुसाफ़िर बनाये रखती हैं। पत्थर होकर भी पिघलाएं रखती हैं। एक अनंत बनाये रखती हैं।
जब तक तुम्हारा शहर निश्चिन्त है, मैं खूबसूरत रूमानी सफर में रहूंगी।
कितने ही चौराहे
कितने ही घर
कितने ही चौबारे पार करके रोज़ अपने उस रुके हुए शहर तक पहुंचना अजूबा नहीं आदत है। ये आदतें हमें मुसाफ़िर बनाये रखती हैं। पत्थर होकर भी पिघलाएं रखती हैं। एक अनंत बनाये रखती हैं।
जब तक तुम्हारा शहर निश्चिन्त है, मैं खूबसूरत रूमानी सफर में रहूंगी।
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