किसी रोज़ बिखेरने लगो तो बताना...
मैं तुम्हारे लिए कविता हो जाऊंगी ।
मैं तुम्हारे लिए कविता हो जाऊंगी ।
बस अभी.... शब्दों को आगोश में लेकर कल्पना को कहते देखा
सुनो ना...
मेरी सारी कविताएँ पोंछ दो...
मेरी सारी कविताएँ पोंछ दो...
आज खोने का जी है....
एक बार फिर कल्पना होने का जी है।
एक बार फिर कल्पना होने का जी है।
आंखे उन सवालों के जवाब कभी नहीं देती जो उससे पूछे जाते हैं....
हाँ ......उन सवालों का जवाब जरूर होती हैं जो उसमें घुल जाते हैं।
हाँ ......उन सवालों का जवाब जरूर होती हैं जो उसमें घुल जाते हैं।
हाँ बोलकर मुकर जाना ....
ज़िन्दगी की इसी अदा से इश्क़ रखती हूं।
ज़िन्दगी की इसी अदा से इश्क़ रखती हूं।
परे जाकर अपना बस संजोना ......
प्रेम ये भी तो है।
प्रेम ये भी तो है।
लो...... चाँद भी बुझा दिया
अपने शब्दों की लौ भी कम कर दी
मुस्कुरा देते तो.... रात रानी खिल जाती
अपने शब्दों की लौ भी कम कर दी
मुस्कुरा देते तो.... रात रानी खिल जाती
कागज़ का शोर कल्पना का मौन है
साथी बदलते हैं.... साया नहीं बदलता
ज़िन्दगी को किसी भी कोने से छू लो..
ज़िन्दगी को किसी भी कोने से छू लो..
जितनी देर साथ दे सके .... साये में रहे...
हम दोनों के बीच एक तय दूरी हमेशा चलती है जिसमें हम दोनों कम ज्यादा होते रहते हैं ।
वो ज्यादा पास आते नहीं...... हम ज्यादा दूर जाते नहीं।
कोई टिप्पणी नहीं:
टिप्पणी पोस्ट करें