खिड़कियों
से एक रोज़ बयार आयी
फिर बहार
धीरे धीरे
सीख, सोच और
सलीका आने लगा
कुछ रोज़
बाद नज़रिया और प्रतिबंध चले आये
लो ...अब
उलाहना और लांछन का आना शुरू हो गया
फिर कुछ
दिनों तक चीख.... दर्द .....विद्रोह आता रहा
और एक दिन
....
फिर हद
चली आयी
एक खबर
में लिपटी
ये कैसे
घरौंदे रख छोड़े हैं हमने बेटियों वाले
जिसमें दर
तो था ही नहीं कभी
दरख्वास्त
तक नहीं छोड़ी हमने ।
कुछ
खिड़कियां थी ....
वो भी
अंदर ही बंद होने वाली
सांस एक
तरफा कब तक जिंदा रखेगी
अब तो
दांव खेलना होगा ....
आखिरी
वाला
शून्य के
आगे अंक लगाने का समय आ गया
अब पूजा
नहीं होगी ....
सिर्फ
प्रसाद बंटेगा
हुँकार
वाला ....
दर भी
खुले और..... अब डर भी
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