दुःख तो
हमेशा से ही सदाबहार रहा है
पर उसमें
खिलने वाले फूल,
वो फूल...
जो किसी
स्त्री की देह के लिए ही खिलते हैं
निश्चित
ही.... सुर्ख़ लाल रंग के होते होंगे
सटा के
देखिये ...किसी भी स्त्री
से लाल रंग..
बेहद
फबेगा ...
चाहे शरीर
से रिसता हो
या
...सिंदूर सा चिपका हुआ,
ये लाल
फूल वाला दुःख ही है
जिसे धारण
कर
वो अपने
होने का सुख बांचती फिरती है
इम्तेहान
देती रहती है
उस पल ..
हर
माह....
हर उम्र
में
और परिणाम
भी ... परिमाण भी
रक्त सा
सुर्ख़ ही लगता है उसके दामन में
ये सुर्ख़
फूल...
किसी और
का सुख होता तो जरूर होगा
वर्ना ...
हर मौसम, हर सदी..
स्त्री
ख़ूबसूरत कैसे लग सकती है ?
वो
भी...... बिना श्रृंगार
फूल किसके
लिए बोझ हुए हैं भला ?
लाल दुःख
स्त्री ने अपने केश में टांक दिया है ।
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