बेशक कुछ बहारें कम कर दो इस फ़िज़ा की....
यूँ कलियों को तो ना मसलो
जिस बेशर्मी से बीज को कुचला जा रहा है वो दिन दूर नहीं जब धरा भी पत्थर ही जनेगी।
जल्द ही कुछ नई संवेदनाओं का अविष्कार करना होगा....
अब तक की ज्यादातर अवसान के निकट हैं ।
यूँ कलियों को तो ना मसलो
जिस बेशर्मी से बीज को कुचला जा रहा है वो दिन दूर नहीं जब धरा भी पत्थर ही जनेगी।
जल्द ही कुछ नई संवेदनाओं का अविष्कार करना होगा....
अब तक की ज्यादातर अवसान के निकट हैं ।
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