सुनो.....
सारी दुनिया में सिर्फ तुम्हें खोजती हूँ ...
ये कोई अलग सी बात नहीं थी ।लेकिन आज इस लिए अलग लग रही थी कि तुमसे ये कह देने का मन बना कर बिस्तर से उठी थी ।रोज़ एक ही ख्याल के साथ सो जाना उसे मुरझा देता है। इससे पहले की ख्वाब का रंग फीका होता आज मैंने उसे शब्द पहना दिए ।रंग तो फिर भी उड़ जाते हैं ....इसलिए लिख दिया कि एक तलाश है जो तुम तक पहुंचना चाह रही है ।लिख दिया कि मेरे तलाश का चेहरा तो है पर पता नहीं।
ये लिखा ख्याल पहुंचे शायद तुम तक ......
किसी रोज़ बिना उड़े...बिना ग़ुम हुए।
तुम्हें मीठे प्रेम के लिए कभी नहीं खोजा मैंने ।वो किसी और के हिस्से का है तुम में। मैं तुम में सुख दुख की बही लिखती हूँ ।जाने क्यों ऐसा लगता है कि सुना तो सबका जा सकता है पर कहा सिर्फ तुमसे जा सकता है।
तुममें दुख दबा देना और खुशी उगा देना ...
उफ्फ्फ! कल्पना कितनी खुदगर्ज़ हो तुम।
हालांकि ये भी सच है कि जितना कहना चाहती हूँ उसकी सिर्फ एक बून्द कह देने के बाद चुप होना सीख गयी हूँ ।कम कम में बहुत सारा कुछ सुन कह लेना ही तो पाया है मैंने तुमसे।आज इतना तो कह ही दूँ कि तुमने हर बार मुझे कम दिया और मैंने हर बार उससे भी कम लिया।ज्यादा ...बहुत ज्यादा मेरी कल्पना ने कर लिया खुद के लिए। बाँवरी हूँ ना।
ऐसा हम अक्सर सब के लिए नहीं लिख पाते ....
तुम मेरे पास होते हो तो कोई दूसरा नहीं होता।
शब्दों का सिरा पकड़ कर धीरे धीरे एक दूसरे को समझने के लिए बहुत सारा धैर्य चाहिए । इस धैर्य में मन से ज्यादा मैंने तुम्हारी आँखों को पढ़ा ।ये जब मुस्कुराती हैं तो मेरे आसपास की धुन्ध हट जाती है ।सुकून महसूसना सीख गई हूं। अब तुम्हारा न होना खलता है। ये शिकायत कतई नहीं है ये उन बहुत सारी चाहनाओं की अरज है जो अगर में कह न पाऊँ तो मेरे शब्दों में पढ़ लिया करना।
इज़हार कब लिखा जा सका है जो पढ़ा जा सकेगा ।इसे फ़िज़ा में घुला रहने दो। मुझे आसपास रहने दो ।
कभी सोचती हूँ सिर्फ एक बार मिल लेना किसी को जान लेने के बराबर होता तो नहीं फिर तुम क्यों अलग हो ?
शायद तुम्हें जानने का उद्देश्य था ही नहीं कभी मेरा।हां ...तुम्हारे शब्दों से प्रीत हो गई है।उनका आस पास न होना चुभता नहीं उदास कर देता है। बहुत अच्छे से इस बात को मैंने अपने दुपट्टे में बांध लिया है कि जो तुम महसूस करते हो वो सबके लिए है और जो कहते हो सिर्फ मेरे लिए। ना भी होता हो मेरे लिए पर मैं तो अपने हिस्से की पंक्तियाँ चुन चुन के सहेज रहीं हूँ। एक तरफ़ा नदी ही तो नहीं बहती ... चाहनाएँ भी बहती हैं।
किसी रोज़ पहाड़ों के बीच बसे मेरे घर से उन चुनी हुई पंक्तियों के साथ अपनी मौन एक तरफ़ा नदी बादलों में भर कर जरूर भेजूंगी । उस रोज होने वाली रूमानी बारिश का इंतज़ार करना ।
जैसे मैंने किया हमेशा ......तुम्हारे जाने बिना .....तुम्हारा।
तुम्हारी कल्पना
Apne bahkhubi apne ehsaas ko sabdo ke vastra pahnaye hai, koi lekhak hi apne dil ki ghehrahiyoon se aise sabd jorker alankkar bna sakta.
जवाब देंहटाएं🙏
thanks
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