बिंदिया से बिछिया तक ......
सब में तुम्हारी परछाई क़ुबूल है
बस.....वजूद में खुद को देखती हूँ
वर्ना ये जीना भी तो फ़िज़ूल है
सब में तुम्हारी परछाई क़ुबूल है
बस.....वजूद में खुद को देखती हूँ
वर्ना ये जीना भी तो फ़िज़ूल है
"कनेर" तुम मुझे इसलिए भी पसंद हो कि तुम गुलाब नहीं हो.... तुम्हारे पास वो अटकी हुई गुलमोहर की टूटी पंखुड़ी मैं हूँ... तुम्हें दूर ...
कोई टिप्पणी नहीं:
टिप्पणी पोस्ट करें