इक याद चली है मुझसे .....
कई साल पिरोये हुए
कितना कुछ खोये हुए.....
कितना कुछ संजोये हुए
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कनेर
"कनेर" तुम मुझे इसलिए भी पसंद हो कि तुम गुलाब नहीं हो.... तुम्हारे पास वो अटकी हुई गुलमोहर की टूटी पंखुड़ी मैं हूँ... तुम्हें दूर ...

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