जब तक कि मैं वो दास्तां समेट पाती .... तुमने कुछ शब्द बहा दिए कुछ जला दिए अधूरी कहानियों को सीने वाले शब्द.... कहीं तो मिलते ही होंगे बाज़ार में
आज कलम...... कुछ ख़ास बिनेगी
"कनेर" तुम मुझे इसलिए भी पसंद हो कि तुम गुलाब नहीं हो.... तुम्हारे पास वो अटकी हुई गुलमोहर की टूटी पंखुड़ी मैं हूँ... तुम्हें दूर ...
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