जब मैं खुश होती हूँ,
तो इश्क़ लिखती हूँ
और जब बहुत खुश होती हूँ
तो इश्क़ उकेरता है मुझे
इश्क़ तो शब्दों को हुआ है
मेरा क्या ......
मैं तो बस लिखती जाती हूँ
ख़ुशी - ख़ुशी
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कनेर
"कनेर" तुम मुझे इसलिए भी पसंद हो कि तुम गुलाब नहीं हो.... तुम्हारे पास वो अटकी हुई गुलमोहर की टूटी पंखुड़ी मैं हूँ... तुम्हें दूर ...

-
रिश्तों को तो रोज़ ..... ढोता है आदमी फिर क्यों बिछड़कर .... रोता है आदमी दिन भर सपने ..... कौड़ियों में बेचता रात फिर इक ख्वाब .. ब...
-
"रोज़" ही मिलते हो ... "बाद मुद्दत" ही लगते हो....
-
तुम..... मेरी ज़िन्दगी का वो बेहतरीन हिस्सा हो जो ....मिला बिछड़ा रुका चला पर ......आज तलक थका नहीं इसीलिए तो कहती हूँ .... बस इक "ख्...

कोई टिप्पणी नहीं:
टिप्पणी पोस्ट करें