दिन के उठने से कई घंटों पहले....
अपना सूरज उगा लेती हो
और देर रात तक.....
इन तारों को बुहारती रहती हो
ज़िन्दगी.......
तुम भी "औरत" हुए जा रही हो
"कनेर" तुम मुझे इसलिए भी पसंद हो कि तुम गुलाब नहीं हो.... तुम्हारे पास वो अटकी हुई गुलमोहर की टूटी पंखुड़ी मैं हूँ... तुम्हें दूर ...
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