कुछ फ़ासले तय नहीं किये जाते ....
बस रख दिए जाते हैं दरमियां
"खलिश" और "खला"जैसे शब्द रोपने के लिए
इस पार से उस पार की दूरी खुद सोखने के लिए
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कनेर
"कनेर" तुम मुझे इसलिए भी पसंद हो कि तुम गुलाब नहीं हो.... तुम्हारे पास वो अटकी हुई गुलमोहर की टूटी पंखुड़ी मैं हूँ... तुम्हें दूर ...

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तुम..... मेरी ज़िन्दगी का वो बेहतरीन हिस्सा हो जो ....मिला बिछड़ा रुका चला पर ......आज तलक थका नहीं इसीलिए तो कहती हूँ .... बस इक "ख्...
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लिफ़ाफ़े में दिल बांधने का ... इक हुनर सा है ख़त बेहद इन्तेज़ारी को मिले जो ... बस सबर सा है ख़त शुरू से अंत तक "तुम" का ...ये सफ़र सा...

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