खुद का....सिर्फ खुद हल ढूंढने जैसा है .....तुमसे मिलना दूर और पास मायने नहीं रखता .....अब बस..... कुछ पल मैं .... और शायद फिर ....इक नयी ....मैं
"तुम " नहीं लिख रही ... "तुम" तो mandatory हो
"कनेर" तुम मुझे इसलिए भी पसंद हो कि तुम गुलाब नहीं हो.... तुम्हारे पास वो अटकी हुई गुलमोहर की टूटी पंखुड़ी मैं हूँ... तुम्हें दूर ...
कोई टिप्पणी नहीं:
टिप्पणी पोस्ट करें