सच है ....
हर बार
हर रोज़
अपने लिखे हुए की
आख़री पंक्ति में
तुम्हें ही धर के
सो जाती हूं
कि अगली सुबह
तुम ही मिलो
मुस्कुराते हुए
पहली पंक्ति में
लिखे जाने के लिए
मेरी सोच में जिए जाने के लिए
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कनेर
"कनेर" तुम मुझे इसलिए भी पसंद हो कि तुम गुलाब नहीं हो.... तुम्हारे पास वो अटकी हुई गुलमोहर की टूटी पंखुड़ी मैं हूँ... तुम्हें दूर ...

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 11 नवम्बर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुंदर भाव-अभिव्यक्ति।
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