जब कभी हारने लगो तो ....
शब्दों का मलहम नहीं
अपने से.....
अपनी ख्वाइशों के वादों का इक टुकड़ा
खुद पर रख लो
जख्मी हौसलों को आराम मिलेगा
इक बार फिर इक नया आयाम मिलेगा
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कनेर
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कल्पना जी आपकी इस रचना की कविता मंच ब्लॉग पर साँझा किया गया है
जवाब देंहटाएंसंजय भास्कर
कविता मंच
http://kavita-manch.blogspot.in