दिल खोलकर कुछ कर जाने के लिए .......
सिर्फ इक हुनर सीख लीजिये....
अपने कान बंद कर लीजिये
हद से गुजर जाइयेगा
अपना कद बढ़ा पाइएगा
दिल खोलकर कुछ कर जाने के लिए .......
सिर्फ इक हुनर सीख लीजिये....
अपने कान बंद कर लीजिये
हद से गुजर जाइयेगा
अपना कद बढ़ा पाइएगा
कभी तुमको .....अपने शब्दों में पिरो देना
कभी अपने शब्दों को ....तुममें कस देना
अपनी "इबादत" पर ...."मन्नत "बाँधने जैसा है
कुछ गिरहें खुली रह जाएँ...... तो उलझ जाती हैं
कुछ गिरहें बंधी रह जाएँ .......तो सुलझ जाती हैं
ये शिकायत नहीं .....
शिकवा भी नहीं
नजरिया है....... मेरा
कुछ ख्वाइशें ना xerox हो सकती हैं ना delete ....
वो तो बस होती हैं ....ज़िद्द सी ....खुद से
कुछ प्रश्न ...
अपने अंतस में लिए लिए फिरती हूँ ....
कभी जुबां साथ नहीं देती
कभी नैन
बेउत्तर रहती हूँ .....अमूमन
परत दर परत
प्रश्नों की परत
तुम्हारे लिए यदा कदा
मेरे लिए ही..... क्यूँ अनवरत ?
"कनेर" तुम मुझे इसलिए भी पसंद हो कि तुम गुलाब नहीं हो.... तुम्हारे पास वो अटकी हुई गुलमोहर की टूटी पंखुड़ी मैं हूँ... तुम्हें दूर ...