नज़दीकियों और दूरियों के दरमियाँ
"जगह" का कोई किरदार नहीं होता
बस ....इक "वजह" होती है
जो बेबाक बोलती हुई
प्रेम को
स्थापित....... विस्थापित .... पुनर्स्थापित
करती रहती है
बड़ी ख़ामोशी से .....
"जगह" का कोई किरदार नहीं होता
बस ....इक "वजह" होती है
जो बेबाक बोलती हुई
प्रेम को
स्थापित....... विस्थापित .... पुनर्स्थापित
करती रहती है
बड़ी ख़ामोशी से .....
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