शहर.....
शहर
तेरी नज़रों में रोज़ रोज़ की ख्वाइशें
उबकाई आती है अब
वही रोज़ का मैला कुचैला लिबास
वही नया सूरज ....ढूंढने की हवस
तेरी नज़रों में रोज़ रोज़ की ख्वाइशें
उबकाई आती है अब
वही रोज़ का मैला कुचैला लिबास
वही नया सूरज ....ढूंढने की हवस
शहर
तेरे स्वाद में नमक बचा ही नहीं
की भूख बुझा सके
दिन भर का पसीना सुखा सके
चाँद सी रोटी कमाई ..... रिश्तों संग चबाई
तेरे स्वाद में नमक बचा ही नहीं
की भूख बुझा सके
दिन भर का पसीना सुखा सके
चाँद सी रोटी कमाई ..... रिश्तों संग चबाई
शहर
तेरी बातों में वो रवानगी गुल है
बस हिचक महसूस होती है
न तू लफ्ज़ खर्च करता है , न एहसास
सिर्फ कहता जाता है ....अनाप शनाप
तेरी बातों में वो रवानगी गुल है
बस हिचक महसूस होती है
न तू लफ्ज़ खर्च करता है , न एहसास
सिर्फ कहता जाता है ....अनाप शनाप
शहर
तेरे सुनने लायक कुछ कहा ही कहाँ ?
ये लादे हुए ठहाके
और कुछ बनावटी कहकहे है
बाकी तो सन्नाटा बह रहा है ....सबके दरमियान
तेरे सुनने लायक कुछ कहा ही कहाँ ?
ये लादे हुए ठहाके
और कुछ बनावटी कहकहे है
बाकी तो सन्नाटा बह रहा है ....सबके दरमियान
शहर
तेरे छूने से कोई सरसराहट भी ना होगी
सब निर्जीव से पड़े हैं
एक से बढ़कर एक अजूबे
बस अपनी धुनकी में .... मद में डूबे
तेरे छूने से कोई सरसराहट भी ना होगी
सब निर्जीव से पड़े हैं
एक से बढ़कर एक अजूबे
बस अपनी धुनकी में .... मद में डूबे
शहर .....तू कितना तनहा है
शहर.....तू कितना अकेला है
शहर.....तू कितना अकेला है
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