कोरे कागज़ पर .....
कुछ खामोश लफ्ज़
धर के तो देखो
कुछ पिघलते रंग
भर के तो देखो
देखो तो सही .....एक बार
एहसास के
इस पार से .......उस पार
पहली बार
और शायद .......आखिरी बार
क्या पता
मैं नज़र आ जाऊं
इन शब्दों की सलवटों में
इन रंगों की आहटों में
तुम्हारी
सिर्फ तुम्हारी .....कल्पना बनकर
गुरुवार, 17 मार्च 2016
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कनेर
"कनेर" तुम मुझे इसलिए भी पसंद हो कि तुम गुलाब नहीं हो.... तुम्हारे पास वो अटकी हुई गुलमोहर की टूटी पंखुड़ी मैं हूँ... तुम्हें दूर ...

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