कुछ यादों के नुपुर
मैंने
अपनी साँसों में
पिरो लिए हैं
जो थिरकते रहते है मुझमें
दिन ….. रात
हर पल…… हर लम्हा
मध्यम …….मध्यम
इनकी झंकार
मुझे
अकेला
होने नहीं देती
कुछ था अपना …….कभी
आज भी
उसे खोने नहीं देती
"कनेर" तुम मुझे इसलिए भी पसंद हो कि तुम गुलाब नहीं हो.... तुम्हारे पास वो अटकी हुई गुलमोहर की टूटी पंखुड़ी मैं हूँ... तुम्हें दूर ...
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