जाने क्यों ......
हमारा मन तो "हाँ "का ....दीवाना है
पर ....ये दिमाग़....
"नहीं "को पागलों की तरह चाहता है .....
आँखें..... "हाँ "कहने को ललचाती हैं
पर..... ये कान ....
"नहीं "की लेप हमारे होठों में मल देते हैं
हम जानते हैं ....
भली भांति मानते हैं....
कि .......
"नहीं" को "हां "में बदलने के लिए
"असंभव" को "संभव" करने ले लिए
हमें .....
खुला मन
खुला दिमाग
खुली आँखे
खुले कान
और..... सदा
खुले हाथ ही तो चाहिए
बंद द्वार में..... प्रवेश कैसे करेगी ख्वाइशें ?
और ....
कैसे दस्तक देगी जीत ?
पर हम तो हम हैं.....
चलो इक बार ....बदल के देखें
"नहीं " में..... "हां" की ..दखल देके देखें
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