ठीक तुम्हारे पीछे ....
मैं खड़ी हूँ......
खूबियों ...और
खामियों .....
की फेहरिश्त सी
अबकी .....
नज़र ....और
नज़रिये ....
का चश्मा बदलते रहना ....
सिर्फ ....
दूर ....और
पास ....का नहीं ....
उस ग्लास .... और
इस फ्रेम का नहीं
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कनेर
"कनेर" तुम मुझे इसलिए भी पसंद हो कि तुम गुलाब नहीं हो.... तुम्हारे पास वो अटकी हुई गुलमोहर की टूटी पंखुड़ी मैं हूँ... तुम्हें दूर ...

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