आज मेरा शहर
बिजली में नहा रहा है,
हर घर नया
आँगन चमचमा रहा है,
मन कितनों ने बुहारा इस बार ?
" प्रश्न " हर वर्ष का
आज भी सता रहा है
रिश्तों को तोहफा
सहला रहा है ,
कोई कुछ भी नहीं
कोई कितना कुछ पा रहा है ,
त्यौहार या तृष्णा का कारोबार ?
" प्रश्न" हर वर्ष का
आज भी सता रहा है
किसी का आम दिन ,
कोई लाखों उड़ा रहा है
कोई सिर्फ उम्मीद ,
कोई ऐश्वर्य दिखा रहा
परमार्थ का इक दीप
मन के लिए नहीं?
" प्रश्न "हर वर्ष का
आज भी सता रहा है
कागज़ में रौशनी संग
आवाज़ बाँध रहा है
खुद आग है
और धमाका मांग रहा है
खुशियां फैला ,
विष नहीं
त्यौहार बना ...व्यापार
" प्रश्न "हर वर्ष का
आज भी सता रहा है
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