द्वार खोल के .....मन बहा देना
ज़ार ज़ार सबको .....सच बता देना
मलंग ऐसा बोलो कौन ?
मैं .....और...... मेरी कलम
और भला होगा कौन ?
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कनेर
"कनेर" तुम मुझे इसलिए भी पसंद हो कि तुम गुलाब नहीं हो.... तुम्हारे पास वो अटकी हुई गुलमोहर की टूटी पंखुड़ी मैं हूँ... तुम्हें दूर ...

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