फूंक दो ना .....कुछ टुकड़े हवा मुझ पर रख दो ना ....कुछ चुटकी धूप यहाँ गिरने दो ना .....कुछ मुट्ठी जल मुझ पर आज .... इस कल्पना की मिटटी पर .... रस भरे .....शब्द उगाने की जिद्द है
शब्दों का बसंत ......जीना चाहती हूँ
"कनेर" तुम मुझे इसलिए भी पसंद हो कि तुम गुलाब नहीं हो.... तुम्हारे पास वो अटकी हुई गुलमोहर की टूटी पंखुड़ी मैं हूँ... तुम्हें दूर ...
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