इस "चाँद" के कान उमेंठे
और पूछें ....
इतना चमकता है ......पर नम क्यों है ? सबके हिस्से है .....पर कम क्यों है ?
"कनेर" तुम मुझे इसलिए भी पसंद हो कि तुम गुलाब नहीं हो.... तुम्हारे पास वो अटकी हुई गुलमोहर की टूटी पंखुड़ी मैं हूँ... तुम्हें दूर ...
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