मुहब्बत ही लुटाते रहे हम , उम्र भर
मलाल रहा , उसको कम गयी ज़िन्दगी
दो दिन ख़ुशी के , दो ही गम के
फिर ज़िन्दगी में रम गयी ज़िन्दगी
दिन के उजाले में , जी भर मुस्कुराई
चाँद के आगोश में , फिर नम गयी ज़िन्द
"कनेर" तुम मुझे इसलिए भी पसंद हो कि तुम गुलाब नहीं हो.... तुम्हारे पास वो अटकी हुई गुलमोहर की टूटी पंखुड़ी मैं हूँ... तुम्हें दूर ...
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