फिर कैसे छोड़ आता है अपनी छाप
बताओ न .....
कैसे सुना आता है अपनी चाप
प्रेम का कोई आकार नहीं ....न ही कोई गंध फिर कहाँ रख पाता है इतने एहसास
बताओ न .....
कैसे दे आता है सगरे आभास
प्रेम का कोई पता नहीं .....न ही कोई प्रारूप फिर कैसे सटीक दर पर है धरता अर्ज़ी
बताओ न
कैसे है इतनी करता मनमर्जी
प्रेम का कोई आदि नहीं.... न ही कोई अंत
फिर कैसे जो क़तरा है , समुंदर भी है
बताओ न
जो सामने है , वो कैसे अंदर भी है
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