हर दिन जख्म नया , दर्द अपनों को खोने का
जिंदगी सीख ले ,तू भी फन बे-अश्क रोने का
खला से पूछ बैठी , एक दिन खलिश यूँ ही
ये माज़रा क्या है ...होने का और न होने का ?
गुलाब की पंखुरियों से सूख गए ख्वाब मेरे
सिरहाना मुझे ,मैं वक़्त खोजता रहा सोने का
तकनीक ने किताब छीनी , बचपन खा गयी
"फ़ालतू" इक तखल्लुस लग गया ,खिलोने का
काटना ही है जब पेट , इस बरस भी यक़ीनन तुझको
ढोंग क्यों करता है ,उमींद वाला बींज बोने का
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