सोचा .....
बेनाम लम्हों की
झाड़फूँख ही कर लूं
भरा मन .....खाली ही कर लूं
बस ....
अभी हाथों में धरे ही थे ....ये बैरंग लम्हें
कुछ एहसास ....
टूट टूट कर झरने लगे
हाथ बढ़ाये तो .......
पहलु में भरने लगे
"तुम ऐसे तो ना थे " ......कहने लगे
फिर ....रुके कहाँ ?
बस बहने लगे
"गीली रूह .......मन भीगे "
"बेनाम लम्हे ......सीले सीले "
कोई टिप्पणी नहीं:
टिप्पणी पोस्ट करें