इक हंसी को खो देना
और
जब हंसी हथेली में धर दूं .....,
फफक के रो देना
" ज़िन्दगी "
तेरी इस अदा पे
दिल वार दूं
आज कुछ लम्हे
तेरी जुल्फों से तोड़ूँ
कागज़ पे उतार दूं
कल्पना पाण्डेय
"कनेर" तुम मुझे इसलिए भी पसंद हो कि तुम गुलाब नहीं हो.... तुम्हारे पास वो अटकी हुई गुलमोहर की टूटी पंखुड़ी मैं हूँ... तुम्हें दूर ...
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