कहाँ हैं मेरे नैन ?
खाली .....कोरी
कहाँ हैं मेरी रैन ?
सदियों से ये बह रहे .....
जन्मों से ये कह रहे .....
ठहरते नहीं किसी पर
मंजिल पर भी पहुँचते नहीं
जाने कौन से नगर को ढूँढ रहे ?
जाने कौन सी डगर को बूझ रहे ?
बस तलाश रहे .....
इक रुके हुए दरिया को
उस झुके हुए परबत को
खोज रहे ......
उस टिके बादल को
सीली रात उस रुके दिन को
ढूँढ रहे ....
इक क्षितिज....
जो समुंदर में नहीं
सेहरा में है
इक सराब ....
जो रेत का नहीं
लहरों का है
ढूँढ रहे ....
इक आसमान....
जो सिर्फ उनका है
इक चाँद ....
जो पूरा नहीं
खाली है
उनकी तरह ....कोरा है
बस रीता है
बस अधूरा है
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