और तुम
आकाश कहते हो
छुआ भी नहीं
और तुम
आभास कहते हो
ये रास्ते
किधर भी नहीं जाते
और तुम
हो की इन्हे
उजास कहते हो
इक हंसी
ओढ़े बैठे तो हैं लब पर
और तुम
इसे ज़बरदस्त
लिबास कहते हो
"कनेर" तुम मुझे इसलिए भी पसंद हो कि तुम गुलाब नहीं हो.... तुम्हारे पास वो अटकी हुई गुलमोहर की टूटी पंखुड़ी मैं हूँ... तुम्हें दूर ...
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