इक मासूम एहसास
संजोये रखा था खुद में
खुश हूँ ...,.
की मुझसे निकल गया है आज
फ़िज़ा में घुल गया है आज
इक बार फिर जुदा हुआ है आज
दूर .......बहुत दूर गया है आज
शायद
भूल ही गया है आज
"कनेर" तुम मुझे इसलिए भी पसंद हो कि तुम गुलाब नहीं हो.... तुम्हारे पास वो अटकी हुई गुलमोहर की टूटी पंखुड़ी मैं हूँ... तुम्हें दूर ...
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