ऊब गयी हैं खामोशियाँ भी ....
कहने लगी हैं खामोशियाँ भी....
फेर दो.....
कुछ मुट्ठी भर .....शब्द मुझ पर
उकता गयी हूँ ...
सन्नाटे की चादर में लिपटकर
इस चुप सी कालीन पर चल कर
मूक हुआ है रिश्ता......
सुर दो.....शब्दों के
गुर दो ......लफ़्ज़ों के
पिघलने दो ....
ये जमे से .....लफ्ज़ दरमियाँ
ये थमे से .....लफ्ज़ दरमियाँ
चुभने दो
कुछ एहसास की किर्चियाँ अब
ये आभास की किर्चियाँ अब
थक गयी हूँ ......
तन्हाई की चौसर पर ....बैठे बैठे
कुछ भी ना ..........सुनते कहते
बस लफ्ज़ ही वारो मुझ पर
आज बस और बस.....
शब्द ही हारो मुझ पर
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