दो आखर की "कविता".... देखना चाहो.....
तो ये लो ...."आइना "
पर....
इक गुज़ारिश है .....
कुछ पल ...."नैन" मेरे धर लो
दो आखर की "कविता " से हो ......"तुम"
"मैं" नहीं.....
मेरी "कलम " कहती है ......
"कनेर" तुम मुझे इसलिए भी पसंद हो कि तुम गुलाब नहीं हो.... तुम्हारे पास वो अटकी हुई गुलमोहर की टूटी पंखुड़ी मैं हूँ... तुम्हें दूर ...
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