सरगम खामोश हो गयी
तुम्हारे जाने के बाद
पर.....
आज भी......
हर शाम आभास धरते हो
मेरे ख्वाब में .....
नया अंदाज़ भरते हो
रोज़ ज़रा सा गाकर
ज़रा सा गुनगुनाकर
महफ़िल ....
आगाज़ करते हो
रोज़ कहती हूँ ....
आज फिर कहूँगी ......
कहाँ तुम चले गए ?
"कनेर" तुम मुझे इसलिए भी पसंद हो कि तुम गुलाब नहीं हो.... तुम्हारे पास वो अटकी हुई गुलमोहर की टूटी पंखुड़ी मैं हूँ... तुम्हें दूर ...
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