चाँद से
इश्क़ियत का दौर चला मेरा
जाने कब
सूरज ने दस्तक दी.....
पता ही नहीं चला
क्या करता सूरज ?
मुझसे खफा हुआ सूरज.....
बिन कुछ कहे
चाँद की डली मुंह में रख ली
खेंच लिया ......
सिरहाने रखा
मेरा .....लाल सुर्ख दुपट्टा
चल दिया...... बैरी सूरज
कितना मनाया .......
कितना बताया .......
रूठा तो ......रूठा ही रहा सूरज
अब कैसे कहूँ ....
रात भर की हमारी आंच
और .....
जलता रहा सूरज
मेरे चाँद की डली मुंह में
फिर भी .....
गलता रहा सूरज
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