या फिर
"रूह " आज चली है "ज़िन्दगी" ढूंढने .....
एक जैसा है
पर
है नहीं
पहले में ......
"मैं "मिल रही हूँ "तुमसे" !
दूसरे में .....
"मैं "मिल रही हूँ "खुद से" !
"कनेर" तुम मुझे इसलिए भी पसंद हो कि तुम गुलाब नहीं हो.... तुम्हारे पास वो अटकी हुई गुलमोहर की टूटी पंखुड़ी मैं हूँ... तुम्हें दूर ...
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