हम इस गुरुर में थे ..... की हमने वक़्त बदल लिया
किवाड़ धकेलता वक़्त बाहर निकल आया अंगड़ाई लेता बुदबुदाया
जरा जाकर आइना तो देख पहला कैसा लगता था , अब कैसा हो गया ?
"कनेर" तुम मुझे इसलिए भी पसंद हो कि तुम गुलाब नहीं हो.... तुम्हारे पास वो अटकी हुई गुलमोहर की टूटी पंखुड़ी मैं हूँ... तुम्हें दूर ...
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