किस शाख पर टंगा है
खुशहाली का सपना
तेरा मेरा नहीं
हम सब का अपना
उस साख को हिलाओ
पत्तों पर पड़ी बूंदों को
हथेली पर जमाओ
हर ओस को
आस बनाओ
हर आस को
विश्वाश बनाओ
किस अर्श पर खीचीं हैं
उमीदों की तरंगे
तेरी मेरी नहीं
हम सबकी उमंगें
इन तरंगों को
इकठा कर लाओ
अद्भुत सी इक
धुन बनाओ
साज़ ना सही
संग ही गाओ
आज नया
इक राग बनाओ
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