संदूक में
पड़े पड़े सील गए हैं
कुछ देर
एहसासों की धूप दिखा दूं ....
लिपटना चाहते हैं शायद
इशारों से बुला रहे हैं शायद
आज फिर आज़मा रहे है शायद
जानते हैं .....
बढ़ेगा मेरा हाथ इक बार फिर
झाड़ पोंछ कर इक बार फिर
मुस्कुराकर इक बार फिर
लपेट लुंगी वो गरम मफलर
इतनी चटख धूप में भी
सिर्फ ये चखने
की यादें ......
सीली हैं अभी तक
जरा इत्मीनान से पढियेगा.....
ये पंक्तियाँ ......
गीली हैं अभी तक
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