लो आज फिर खड़े हो गए तुम
मेरी देहलीज़ पर
रिक्त हाथ .....
उससे भी रीता मन लिए
बस नज़रे मुझ पर
या मेरी खूबसूरत चीज़ पर
हर हिसाब रखा है मैंने ...
जब जब काली कूंची फेरी तुमने
निर्मल तन पर
निश्छल मन पर
किया प्रहार मेरे अस्तित्व पर
दागा प्रश्न मेरे स्त्रीत्व पर
बदरंग किया है मेरा स्वरुप
बदल के रख दिया है मेरा प्रारूप
पलट के देखो तो सही .....अपना भूत
बिखरा मिलेगा मेरा लहूलुहान ......वजूद
शोषित वत्सला
द्रवित अबला
अपेक्षित ममता
नुचती सुंदरता
दूषित सलिला
पीड़ित निर्बला
अब भी चेत जाओ !
रख लो मेरा मान
जला लो इक लौ .....आत्मीयता की
टांग दो इक सूरज .......समानता का
की दहक गयी अबकी
तो लिहाज़ न रखूंगी
तेरे अभिमान का
तेरे झूठे गुमान का
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