और
समन्दर कभी
नदी की तरफ मुडा नहीं करते
मैं बहती आती तो हूँ ......
रोज तुम तक
अपनी भावनाएं
संवेदनाएं लेकर
और तुम में तृप्त हूँ
स्नेह लेकर
काश तुम ये समझ पाते
अपनी लहरों में उफान न लाते
रीता होना
तुझमे समां जाना
मुझे भाता है
मुझे भी बस यही
सिर्फ यही आता है
तुम अपने को समन्दर ही रखो
तुम मुझ पर कभी न झुको
मैं सदियों से बह रही हूँ
तुमसे सिर्फ तुमसे ही कह रही हूँ
काश तुम सुन पाते
मुझे छोड़ के न जाते
अपनी नदी से रूठ न जाते...... देव
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